Padarth Vidnyan

२. पञ्चमहाभूत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश, ये पञ्चमहाभूत हैं। इन्हीं से चेतनाधिष्ठान भूत मानव शरीर, आहार द्रव्य तथा औषध द्रव्य बने हैं। आहार द्रव्यों के द्वारा शरीर में इन तत्त्वों की पूर्ति होती रहती है। इन तत्त्वों की वृद्धि या ह्रास से जब कोई विकार पैदा होता है, तब उसे दूर करने के लिए उसी के अनुसार उन-उन तत्त्वों को घटाने या बढ़ाने वाले द्रव्य प्रयोग किये जाते हैं। इस प्रकार आयुर्वेद का सम्पूर्ण विचार चाहे स्वास्थ्य सम्बन्धी हो अथवा विकार सम्बन्धी हो, पञ्चमहाभूत के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। ३. त्रिदोष--सृष्टि यद्यपि पाञ्चभौतिक है, किन्तु इन पाँच महाभूतों में पृथ्वी अत्यन्त गुरु एवं स्थूल होने तथा आकाश अत्यन्त लघु एवं सूक्ष्म होने से कार्यकर नहीं होते हैं। अतः शेष तीन जल, अग्नि एवं वायु ही कार्यकर होते हैं। प्रकृति में ये तीनों सूर्य, चन्द्र और वायु रूप में प्राकृतिक क्रियाओं का संचालन नियमन करते हैं। इसी प्रकार शरीर के के अन्दर इनके प्रतिनिधि वात (वायु), पित्त (सूर्य) और कफ (जल) समस्त शारीरिक क्रियाओं का संचालन करते हैं। कफ का कार्य विसर्ग अर्थात् जलीय गुणों के कारण शरीर में रस का संचार (पोषण), पित्त का कार्य आदान अर्थात् आग्नेय गुणों के कारण पाचन, रूपान्तरण तथा शोषण और वायु का कार्य विक्षेप अर्थात् गतिकर्म से शारीरिक घटकों का संचालन और नियमन करना है। वातादि दोषों का वैषम्य (विषमता-वृद्धि या क्षय) रोग तथा साम्य (समता साम्यावस्था) अरोगता (आरोग्य स्वास्थ्य) है। ' दूषयन्ति मनः शरीरं च इति दोषाः'। सिद्धान्तनिदान-तत्त्वदर्शिनी) अर्थात् देह एवं मन को दूषित कर देने की विशेषता रखने के कारण दोष कहा जाता है। विजयरक्षित ने कहा है- ' प्रकृत्यारम्भ कत्वे सति स्वातन्त्र्येण दुष्टिकर्तृत्वं दोषत्वम्'। अर्थात् दोष में प्रकृति निर्माण करने की क्षमता और स्वतन्त्रतापूर्वक शरीर को दूषित करने की प्रवृत्ति होती है।

पदार्थ विज्ञान

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त्रिदोष–सृष्टि यद्यपि पाञ्चभौतिक है, किन्तु इन पाँच महाभूतों में पृथ्वी अत्यन्त गुरु एवं स्थूल होने तथा आकाश अत्यन्त…
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